कीजिए न असीरी में अगर ज़ब्त नफ़स को
कीजिए न असीरी में अगर ज़ब्त नफ़स को
दे आग अभी शोला-ए-आवाज़ क़फ़स को
बह जावे लहू हो के दिल-ए-क़ाफ़िला-सालार
तालीम दे नाला जो मिरा बाँग-ए-जरस को
पहुँचे है नम-ए-दाग़-ए-जिगर ता सर-ए-मिज़्गाँ
शादाब मैं रखता हूँ सदा आग से ख़स को
फिरता है उधर ज़ुल्फ़ में शाना तो इधर दिल
ये दुज़द न लाया कभू ख़ातिर में असस को
ऐ इश्क़ न फ़रहाद बचा तुझ से न परवेज़
बा-ख़ाक बराबर तू किया ना-कस-ओ-कस को
ले सकते नहीं साँस तिरी कू के मुक़य्यद
ता ख़ून-ए-जिगर बीच न ग़ोता दें नफ़स को
तर्ग़ीब न कर सैर-ए-चमन की हमें 'सौदा'
हर-चंद हवा ख़ूब है वाँ लेक हवस को
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