कब दिल शिकस्त-गाँ से कर अर्ज़-ए-हाल आया
कब दिल शिकस्त-गाँ से कर अर्ज़-ए-हाल आया
है बे-सदा वो चीनी जिस में कि बाल आया
सीने से मैं दुआ को लाया जो शब लबों तक
कहने लगी इजाबत कीधर ख़याल आया
कौनैन तक मिली थी जिस दिल की मुझ को क़ीमत
क़िस्मत कि यक निगह पर जा उस को डाल आया
बख़्शिश पे दो जहाँ के आई थी हिम्मत-ए-दहर
लेकिन न याँ ज़बाँ तक हर्फ़-ए-सवाल आया
नाज़ाँ न हो तू इस पर गर तुझ को संग में से
गौहर निकालने का कस्ब ओ कमाल आया
अर्बाब-ए-फ़हम आगे वो साहब-ए-हुनर है
कीना किसी के दिल से जिस को निकाल आया
दैर-ए-ख़राब में कल इक मस्त की ज़बाँ पर
ये शेर उस जगह के क्या हस्ब-ए-हाल आया
आ'माल देख तेरे मय शर्म से अरक़ है
ऐ मोहतसिब तुझे भी कुछ इंफ़िआल आया
मिलने का एक दम भी याँ ज़ोफ़-ए-दिल है माने'
उकता के उठ गया वो तब मैं बहाल आया
नख़्ल-ए-हयात अपना गुलशन में बाग़बाँ ने
बोया तो था हवस कर लेकिन न पाल आया
इक्सीर है तो क्या है वो मुश्त-ए-ख़ाक 'सौदा'
ख़ातिर पे जब किसी की जिस से मलाल आया
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