हिन्दू हैं बुत-परस्त मुसलमाँ ख़ुदा-परस्त
हिन्दू हैं बुत-परस्त मुसलमाँ ख़ुदा-परस्त
पूजूँ मैं उस किसी को जो हो आश्ना-परस्त
इस दौर में गई है मुरव्वत की आँख फूट
मादूम है जहान से चश्म-ए-हया-परस्त
देखा है जब से रंग-ए-कफ़क तेरे पाँव में
आतिश को छोड़ गब्र हुए हैं हिना-परस्त
चाहे कि अक्स-ए-दोस्त रहे तुझ में जल्वा-गर
आईना-दार दिल को रख अपने सफ़ा-परस्त
आवारगी से ख़ुश हूँ मैं इतना कि बाद-ए-मर्ग
हर ज़र्रा मेरी ख़ाक का होगा हवा-परस्त
ख़ाक-ए-फ़ना को ता-कि परस्तिश तू कर सके
जूँ ख़िज़्र-ए-मस्त खाइयो आब-ए-बक़ा-परस्त
'सौदा' से शख़्स के तईं आज़ुर्दा कीजिए
ऐ ख़ुद-परस्त हैफ़ नहीं तू हवा-परस्त
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