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बरहमन बुत-कदे के शैख़ बैतुल्लाह के सदक़े - मोहम्मद रफ़ी सौदा कविता - Darsaal

बरहमन बुत-कदे के शैख़ बैतुल्लाह के सदक़े

बरहमन बुत-कदे के शैख़ बैतुल्लाह के सदक़े

कहें हैं जिस को 'सौदा' वो दिल-ए-आगाह के सदक़े

जता दें जिस जगह हम क़द्र अपनी ना-तवानी की

अगर कोहसार वाँ होवे तो जावे काह के सदक़े

न दे तकलीफ़ जलने की किसू के दिल को मेरे पर

असर से दूर रहती हैं मैं अपनी आह के सदक़े

अजाइब शग़्ल में थे रात तुम ऐ शैख़ रहमत है

मैं उस रीश-ए-बुलंद और दामन-ए-कोताह के सदक़े

नहीं बे-वजह कूचे से तिरे उठना बगूले का

हमारी ख़ाक भी जाती है तेरी राह के सदक़े

कभू वो शब भी ऐ परवाना हक़ बाहम दिखावेगा

तू बल बल शम्अ पर जावे मैं हूँ उस माह के सदक़े

दिखाती है तुझे किस किस तरह 'सौदा' की नज़रों में

जो हो इंसाफ़ तो जावे तू उस की चाह के सदक़े

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In Hindi By Famous Poet Sauda Mohammad Rafi. is written by Sauda Mohammad Rafi. Complete Poem in Hindi by Sauda Mohammad Rafi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.