मोहम्मद रफ़ी सौदा कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मोहम्मद रफ़ी सौदा (page 4)
नाम | मोहम्मद रफ़ी सौदा |
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अंग्रेज़ी नाम | Sauda Mohammad Rafi |
जन्म की तारीख | 1713 |
मौत की तिथि | 1780 |
जन्म स्थान | Delhi |
हर संग में शरार है तेरे ज़ुहूर का
गुल फेंके है औरों की तरफ़ बल्कि समर भी
ग़ुंचे से मुस्कुरा के उसे ज़ार कर चले
गर तुझ में है वफ़ा तो जफ़ाकार कौन है
गर कीजिए इंसाफ़ तो की ज़ोर वफ़ा मैं
गदा दस्त-ए-अहल-ए-करम देखते हैं
एक हम से तुझे नहीं इख़्लास
दीं शैख़ ओ बरहमन ने किया यार फ़रामोश
दिलदार उस को ख़्वाह दिल-आज़ार कुछ कहो
दिल में तिरे जो कोई घर कर गया
दिल मत टपक नज़र से कि पाया न जाएगा
दिल ले के हमारा जो कोई तालिब-ए-जाँ है
धूम से सुनते हैं अब की साल आती है बहार
देखूँ हूँ यूँ मैं उस सितम-ईजाद की तरफ़
देखे बुलबुल जो यार की सूरत
दामन सबा न छू सके जिस शह-सवार का
चेहरे पे न ये नक़ाब देखा
बुलबुल ने जिसे जा के गुलिस्तान में देखा
बे-वज्ह नईं है आइना हर बार देखना
बेचैन जो रखती है तुम्हें चाह किसू की
बरहमन बुत-कदे के शैख़ बैतुल्लाह के सदक़े
बार-हा दिल को मैं समझा के कहा क्या क्या कुछ
बहार-ए-बाग़ हो मीना हो जाम-ए-सहबा हो
बातिल है हम से दावा शायर को हम-सरी का
अपने का है गुनाह बेगाने ने क्या किया
ऐ दीदा ख़ानुमाँ तू हमारा डुबो सका
ऐ आह तिरी क़द्र असर ने तो न जानी
आशिक़ की भी कटती हैं क्या ख़ूब तरह रातें
आराम फिर कहाँ है जो हो दिल में जा-ए-हिर्स
आदम का जिस्म जब कि अनासिर से मिल बना