पक्का रस्ता कच्ची सड़क और फिर पगडंडी
जैसे कोई चलते चलते थक जाता है
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कभी सराब करेगा कभी ग़ुबार करेगा
तेरी शिकस्त अस्ल में मेरी शिकस्त है
दिल में रक्खे हुए आँखों में बसाए हुए शख़्स
अपना गिर्या किस के कानों तक जाता है
अजीब ढंग से मैं ने यहाँ गुज़ारा किया
बादल की तरह रंज-फ़िशानी करें हम भी
सूरज के उफ़ुक़ होते हैं मंज़िल नहीं होती
हर इक उफ़ुक़ पे मुसलसल तुलूअ होता हुआ
वो चाहता था कि देखे मुझे बिखरते हुए
ये मेरी काग़ज़ी कश्ती है और ये मैं हूँ
गुज़र चली है शब-ए-दिल-फ़िगार आख़िरी बार
तमाम उम्र यहाँ किस का इंतिज़ार हुआ है