मता-ए-हर्फ़ भी ख़ुश्बू के मा-सिवा क्या है
मता-ए-हर्फ़ भी ख़ुश्बू के मा-सिवा क्या है
हवा के रुख़ पे न जाऊँ तो रास्ता क्या है
मैं ज़र्द बीज हूँ और सब्ज़ होना चाहता हूँ
मिरी ज़मीं तिरी मिट्टी का मशवरा क्या है
ये मेरी काग़ज़ी कश्ती है और ये मैं हूँ
ख़बर नहीं कि समुंदर का फ़ैसला क्या है
बिखर रहा हूँ तिरी तरह मैं भी ऐ ज़र-ए-गुल
सो तुझ से पूछता हूँ तेरा तजरबा क्या है
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