बहार-ए-गुल से अब दौर-ए-ख़िज़ाँ तक
बहार-ए-गुल से अब दौर-ए-ख़िज़ाँ तक
कहाँ से बात आ पहुँची कहाँ तक
कहाँ जाएँगे अब आख़िर यहाँ से
जो आ पहुँचे तुम्हारे आस्ताँ तक
डुबो देगा हमें ख़ुद नाख़ुदा ही
न था इस का कभी वहम-ओ-गुमाँ तक
रफ़ू-गर आ के भी अब क्या सिएगा
नहीं दामन की बाक़ी धज्जियाँ तक
ग़ज़ब है जल गया दिल का नशेमन
नहीं उट्ठा मगर इस से धुआँ तक
पता देते हैं किस की अज़्मतों का
मह-ओ-अंजुम से राह-ए-कहकशाँ तक
तिरा 'जाँबाज़' हो कर डगमगाए
भला दार-ओ-रसन के इम्तिहाँ तक
(499) Peoples Rate This