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अगला सफ़र तवील नहीं - सत्यपाल आनंद कविता - Darsaal

अगला सफ़र तवील नहीं

वो दिन भी आए हैं उस की सियाह ज़ुल्फ़ों में

कपास खिलने लगी है, झलकती चाँदी के

कशीदा तार चमकने लगे हैं बालों में

वो दिन भी आए हैं सुर्ख़ ओ सपीद गालों में

धनक का खेलना ममनूअ है, लबों पे फ़क़त

गुलों की ताज़गी इक साया-ए-गुरेज़ाँ है

वो भी दिन आए हैं उस के सबीह चेहरे पर

कहीं कहीं कोई सिलवट उभर सी आई है

ज़रा सी मुज़्महिल थोड़ी थकी थकी सी नज़र

तलाश करती है उम्र-ए-गुरेज़ पा के नुक़ूश

उसे भी लगता तो होगा कि मैं वही हूँ, मगर

ख़िज़ाँ-गज़ीदा थका सा उदास रंजीदा

उसे भी लगता तो होगा कि हम वही हैं मगर

दिल ओ दिमाग़ की बाहम सुपुर्दगी के दिन

न जाने उम्र के किस मरहले पे छूट गए

मैं चाहता हूँ कभी बात कर के देखूँ तो

कहूँ कि जिस्म तो इक आरिज़ी हक़ीक़त है

कहूँ दरून-ए-दिल-ओ-जाँ जो एक आलम है

वहाँ तो वक़्त का एहसास तक नहीं होता

कहूँ कि उम्र से शिकवा, गिला जवानी है

लबों पे हर्फ़-ए-शिकायत दिलों में तल्ख़ी सी

अलील जज़्बे हैं उन से हमारा क्या रिश्ता?

कहूँ कि आज भी सुब्ह-ए-शब-ए-विसाल के गुल

हमारी रूह में खिलते हैं, आओ साथ चलें

पकड़ के हाथ कि अगला सफ़र तवील नहीं!

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In Hindi By Famous Poet Satyapal Anand. is written by Satyapal Anand. Complete Poem in Hindi by Satyapal Anand. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.