सब घरों में तो चराग़ों का उजाला होगा
सब घरों में तो चराग़ों का उजाला होगा
लेकिन अफ़्सुर्दा फ़क़त रात का चेहरा होगा
सारी परछाइयाँ गोशों में दुबक जाएँगी
सूरज उभरेगा तो ये गाँव अकेला होगा
हम तो वाबस्ता रहे ग़म से वफ़ा के मारे
ग़म ने क्या जानिए क्यूँकर हमें चाहा होगा
जब खिली होंगी तमन्ना के शजर पर कलियाँ
दश्त-ए-उम्मीद में तूफ़ान सा उट्ठा होगा
कोई साया सा है चुप चाप दरीचे में खड़ा
अपनी उल्फ़त का ही शायद वो हयूला होगा
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