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यूँ एहतिमाम-ए-रद्द-ए-सहर कर दिया गया - सत्तार सय्यद कविता - Darsaal

यूँ एहतिमाम-ए-रद्द-ए-सहर कर दिया गया

यूँ एहतिमाम-ए-रद्द-ए-सहर कर दिया गया

हर रौशनी को शहर-बदर कर दिया गया

अपने घरों के सुख से भी रू-कश दिखाई दें

लोगों को मुब्तला-ए-सफ़र कर दिया गया

जीना हर एक के लिए मुमकिन नहीं रहा

जीने को एक कार-ए-हुनर कर दिया गया

चेहरों से रंग हाथ से आईने छीन कर

बे-चेहरगी को रख़्त-ए-नज़र कर दिया गया

अब जिस्म-ओ-जाँ पे हक़्क़-ए-तसर्रुफ़ तलब करे

ज़ालिम को इस क़दर तो निडर कर दिया गया

दरपय थे हर शजर के तअफ़्फ़ुन-शिआर लोग

महरूम ख़ुशबुओं से नगर कर दिया गया

वो क़हत-ए-ग़म पड़ा है कि इक टीस के लिए

अहल-ए-करम का दस्त-ए-निगर कर दिया गया

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In Hindi By Famous Poet Sattar Syed. is written by Sattar Syed. Complete Poem in Hindi by Sattar Syed. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.