पस-ए-आइना ख़द-ओ-ख़ाल में कोई और था
पस-ए-आइना ख़द-ओ-ख़ाल में कोई और था
कोई सामने था ख़याल में कोई और था
जो दिनों के दश्त में चल रहा था वो मैं न था
जो धड़कता था मह-ओ-साल में कोई और था
कोई और था मिरे साथ दौर-ए-उरूज में
मिरे साथ अहद-ए-ज़वाल में कोई और था
जिसे सैद करना था दाम में वो चला गया
वो जो रह गया तिरे जाल में कोई और था
थी ज़मीं रऊनत-ए-रअ'द-ओ-बर्क़ से मुज़्महिल
पस-ए-अब्र-ओ-बाद-ए-जलाल में कोई और था
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