तुम्हारी आस की चादर से मुँह छुपाए हुए
पुकारती हुई रुस्वाइयों में बैठी हूँ
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Gulzar
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Habib Jalib
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(570) Peoples Rate This
शेरी का नौहा
आगही का जाल
इंटरनेट-स्थान की मलिका
वक़्त भी अब मिरा मरहम नहीं होने पाता
बिंत-ए-हव्वा हूँ मैं ये मिरा जुर्म है
निगाह-ए-ख़ाक! ज़रा पैराहन बदलना तो
जाने वाले को चले जाना है
बस एक बार याद ने तुम्हारा साथ छू लिया
बे-परों की तितली
अब तो सँवारने के लिए हिज्र भी नहीं
अपनी हम-ज़ाद के लिए