कोई जवाज़ ढूँडते ख़याल ही नहीं रहा
तमाम उम्र यूँही बे-ख़याल जागते रहे
Gulzar
Habib Jalib
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Rahat Indori
Parveen Shakir
Anwar Masood
Wasi Shah
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निगाह-ए-ख़ाक! ज़रा पैराहन बदलना तो
जाने वाले को चले जाना है
बिस्तर और बावर्ची
दिल के दरिया ने किनारों से मोहब्बत कर ली
सवाल-अंदर-सवाल ले कर कहाँ चले हो
अरीज़े की डाली
अब तो सँवारने के लिए हिज्र भी नहीं
मिरे जज़्बों को ये लफ़्ज़ों की बंदिश मार देती है
जब आह भी चुप हो तो ये सहराई करे क्या
बिंत-ए-हव्वा
बिंत-ए-हव्वा हूँ मैं ये मिरा जुर्म है