कहाँ पे खोलोगे दर्द अपना किसे कहोगे
कहीं छुपाओ, ये हाल ले कर कहाँ चले हो
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बिंत-ए-हव्वा
फिर आस दे के आज को कल कर दिया गया
अब तो सँवारने के लिए हिज्र भी नहीं
सवाल-अंदर-सवाल ले कर कहाँ चले हो
सदाओं का समुंदर
तुम्हारी मुंतज़िर यूँ तो हज़ारों घर बनाती हूँ
जो सारा दिन मिरे ख़्वाबों को रेज़ा रेज़ा करते हैं
मिरे जज़्बों को ये लफ़्ज़ों की बंदिश मार देती है
दिल के दरिया ने किनारों से मोहब्बत कर ली
शेरी का नौहा
कैसे बुझाएँ कौन बुझाए बुझे भी क्यूँ
ख़ाली ख़ाली रस्तों पे बे-कराँ उदासी है