जो सारा दिन मिरे ख़्वाबों को रेज़ा रेज़ा करते हैं
मैं उन लम्हों को सी कर रात का बिस्तर बनाती हूँ
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Habib Jalib
Jaun Eliya
Rahat Indori
Gulzar
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Wasi Shah
Allama Iqbal
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सवाब की दुआओं ने गुनाह कर दिया मुझे
तुम्हारी आस की चादर से मुँह छुपाए हुए
बे-तहाशा उसे सोचा जाए
इर्तिक़ा
फ़ना की अंजुमन से
बिंत-ए-हव्वा हूँ मैं ये मिरा जुर्म है
फिर आस दे के आज को कल कर दिया गया
अब तो सँवारने के लिए हिज्र भी नहीं
इंटरनेट-स्थान की मलिका
शेरी का नौहा
वक़्त भी मरहम नहीं है
आगही का जाल