जाने वाले को चले जाना है
फिर भी रस्मन ही पुकारा जाए
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बिंत-ए-हव्वा हूँ मैं ये मिरा जुर्म है
अपनी हम-ज़ाद के लिए
ख़ाली ख़ाली रस्तों पे बे-कराँ उदासी है
ख़्वाब और तमन्ना का क्या हिसाब रखना है
साए का इज़्तिराब
शेरी का नौहा
अजाइब-ख़ाना
फिर आस दे के आज को कल कर दिया गया
दिल के दरिया ने किनारों से मोहब्बत कर ली
कहाँ पे खोलोगे दर्द अपना किसे कहोगे
बिंत-ए-हव्वा
ख़ला में लुढ़कती ज़मीन