बिंत-ए-हव्वा हूँ मैं ये मिरा जुर्म है
और फिर शाएरी तो कड़ा जुर्म है
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बे-तहाशा उसे सोचा जाए
साए का इज़्तिराब
ख़्वाब और तमन्ना का क्या हिसाब रखना है
अरीज़े की डाली
इंटरनेट-स्थान की मलिका
कोई जवाज़ ढूँडते ख़याल ही नहीं रहा
वक़्त भी मरहम नहीं है
सवाब की दुआओं ने गुनाह कर दिया मुझे
गुम-शुदा लम्हे की तलाश
जब आह भी चुप हो तो ये सहराई करे क्या