बस एक बार याद ने तुम्हारा साथ छू लिया
फिर इस के बाद तो कई जमाल जागते रहे
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साए का इज़्तिराब
बे-तहाशा उसे सोचा जाए
इंटरनेट-स्थान की मलिका
सदाओं का समुंदर
इर्तिक़ा
सवाब की दुआओं ने गुनाह कर दिया मुझे
फ़ना की अंजुमन से
आगही का जाल
जब आह भी चुप हो तो ये सहराई करे क्या
अब तो सँवारने के लिए हिज्र भी नहीं
हज़ार टूटे हुए ज़ावियों में बैठी हूँ
वक़्त भी अब मिरा मरहम नहीं होने पाता