सदाओं का समुंदर
सदाओं का समुंदर
मेरे जिस्म में
एक सदाओं का समुंदर ठहर गया है
ये मेरी आँख
किसी ख़्वाब के पैहम चटख़ने की
गूँज दे रही है
मैं अपनी कोख में से
ख़ामोशियों के हुमकने की
आवाज़ सुन रही हूँ
और फिर!
मेरी उँगली की पोरों से
मेरे हर्फ़ बहे जा रहे हैं
मेरे ख़ून की रवानियाँ
जिस्म की नालियों में से
किसी बिफरती हुई मौज की तरह
अपने साहिल को पुकारती हैं
और मेरी साँस
मेरे आज़ा के बीच से यूँ जा रही है
जैसे
वीरान झाड़ियों के दरमियान से
गुज़रती हुई वो हवा हो
जो सूखे हुए ज़र्द पत्तों के राज़ बाँटती है
और मैं अपने जिस्म की बोसीदा दीवार से कान लगाए
हर एक सदा को बग़ौर सुन रही हूँ
और शायद इन्ही में बह रही है
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