फ़ना की अंजुमन से
बड़ी घुटन है
सवाल-ए-हस्ती तो हाँपते हैं
नज़र की उर्यानियाँ मिली हैं
किसे कहूँ कि
ये मिरे जज़्बों का बासी-पन है
बड़ी घुटन है
जो सर-ब-कफ़ थे,
गिरे पड़े हैं
जो गुल-शफ़क़ थे,
वो नालियों से उबल रहे हैं
किसी जहन्नम की सी जलन है
बड़ी घुटन है
कोई तो रौज़न
कोई दरीचा
कहीं दराड़ों से कोई रस्ता
फ़ना की लम्हों की अंजुमन से
बड़ी घुटन है
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