आमरियत का क़सीदा
भारी बूटों-तले रौंदते जाइए
कोंपलों के बदन आहटों के दिए
भारी बूटों-तले रौंदते जाइए
रेसमां बाँध कर ख़्वाब हँसते रहे
हब्स की ताल पर साँस चलते रहे
चाहिए आप को और क्या चाहिए
भारी बूटों-तले रौंदते जाइए
शाम लौ को लिए रात सहने गई
दर्द की ओढ़नी ख़ाक पहने गई
ढांपिये शौक़ से हर किरन ढांपिये
भारी बूटों-तले रौंदते जाइए
भूक मस्लूब जिस्मों को करने लगी
ज़ख़्म बहने लगे आस मरने लगी
आप को क्या ग़रज़ हम मरे या जिए
भारी बूटों-तले रौंदते जाइए
सिर्फ़ ख़ाने बदलने से क्या फ़ाएदा
चंद नामे बदलने से क्या फ़ाएदा
हम प्यादा-सफ़र थे प्यादे रहे
भारी बूटों-तले रौंदते जाइए
(613) Peoples Rate This