वक़्त भी अब मिरा मरहम नहीं होने पाता
वक़्त भी अब मिरा मरहम नहीं होने पाता
दर्द कैसा है जो मद्धम नहीं होने पाता
कैफ़ियत कोई मिले हम ने सँभाली ऐसे
ग़म कभी ग़म से भी मुदग़म नहीं होने पाता
मेरे अल्फ़ाज़ के ये हाथ भी शल हों जैसे
हो रहा है जो वो मातम नहीं होने पाता
दिल के दरिया ने किनारों से मोहब्बत कर ली
तेज़ बहता है मगर कम नहीं होने पाता
इतना मिल लेता है अज़-राह-ए-तकल्लुफ़ ही सही
कोई मौसम मिरा मौसम नहीं होने पाता
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