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जब आह भी चुप हो तो ये सहराई करे क्या - सरवत ज़ेहरा कविता - Darsaal

जब आह भी चुप हो तो ये सहराई करे क्या

जब आह भी चुप हो तो ये सहराई करे क्या

सर फोड़े न ख़ुद से तो ये तन्हाई करे क्या

गुज़री जो इधर से तो घुटन से ये मरेगी

हब्स-ए-दिल-ए-वहशी में ये पुरवाई करे क्या

कहती है जो कहने दो ये दुनिया मुझे क्या है

ज़िंदानी-ए-एहसास में रुस्वाई करे क्या

हर हुस्न ओ अदा धँस गए आईने के अंदर

जब राख हों आँखें तो ये ज़ेबाई करे क्या

वो ज़ख़्म कि हर लम्स नया ज़ख़्म लगे है

बीमारी-ए-इदराक मसीहाई करे क्या

पल भर को ये सौदा-ए-जुनूँ कम नहीं होता

शहरों के तकल्लुफ़ में ये सौदाई करे क्या

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In Hindi By Famous Poet Sarwat Zehra. is written by Sarwat Zehra. Complete Poem in Hindi by Sarwat Zehra. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.