ज़िंदगी के सब उभरते और ढलते ज़ाविए

ज़िंदगी के सब उभरते और ढलते ज़ाविए

नक़्श हैं नज़रों में नज़रों के बदलते ज़ाविए

धड़कनें बे-ताबियाँ पुर-कैफ़ बाँहों का हिसार

साँस की हिद्दत से जज़्बों के पिघलते ज़ाविए

मुंक़ता' करने लगी हैं होश से इदराक से

इक नज़र की वुसअ'तें क़ौसें मचलते ज़ाविए

रफ़्ता रफ़्ता फूल चेहरों की चमक को खा गए

जिंस-परवर भूकी नज़रों के निगलते ज़ाविए

मुद्दतें तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ को हुईं अब भी मगर

ढूँढती हूँ तेरी जानिब को निकलते ज़ाविए

तुझ को भी होता तो है तर्क-ए-मोहब्बत पर मलाल

तेरी आँखों में हैं रक़्साँ हाथ मलते ज़ाविए

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In Hindi By Famous Poet Sarwat Mukhtar. is written by Sarwat Mukhtar. Complete Poem in Hindi by Sarwat Mukhtar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.