मोहब्बत में कोई तन्हा सफ़र अच्छा नहीं लगता
मोहब्बत में कोई तन्हा सफ़र अच्छा नहीं लगता
जो आऊँ लौट कर तो अपना घर अच्छा नहीं लगता
उसूलन प्यार और नफ़रत हमेशा साथ रहते हैं
तिरी गलियों से लोगों का गुज़र अच्छा नहीं लगता
उन्हें तो क़त्ल करने पर सवाब-ए-ख़ुल्द मिलता है
उन्हीं को प्यार का इक भी शजर अच्छा नहीं लगता
ज़माने-भर के तुम को नाज़-ओ-नख़रे क्यूँ उठाने हैं
ख़ुदा से हो न वाबस्ता तो डर अच्छा नहीं लगता
तुम्हारे कान के झूमर में हो तो दिल उछल जाए
तुम्हारी आँख में जानाँ गुहर अच्छा नहीं लगता
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