ऐ ख़्वाब-ए-दिल-नवाज़ न आ कर सता मुझे
ऐ ख़्वाब-ए-दिल-नवाज़ न आ कर सता मुझे
है नींद आई टूट कर बा'द-अज़-क़ज़ा मुझे
मैं तो जबीन-ए-शौक़ पर लिखता गया उसे
वो भी निगाह-ए-नाज़ से पढ़ता रहा मुझे
उस की ख़िराम-ए-नाज़ पे मरते रहे सभी
लेकिन नुक़ूश-ए-ला'ल में देखा गया मुझे
वो ज़म हुए कुछ ऐसे मिरी काएनात में
वो ही मिलेंगे तुम से जो दोगे सदा मुझे
इक फूल और खिल गया अहद-ए-बहार में
इक संग जब भी तान के मारा गया मुझे
'सरवर' की एक बात ने बेदार कर दिया
चेहरे पे सर्द आब का छींटा दिया मुझे
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