सर-कशी को जब हम ने हम-रिकाब रखना है
सर-कशी को जब हम ने हम-रिकाब रखना है
टूटने बिखरने का क्या हिसाब रखना है
एक एक साअत में ज़िंदगी समोनी है
एक एक जज़्बे में इंक़लाब रखना है
रात के अंधेरों से जंग करने वालों ने
सुब्ह की हथेली पर आफ़्ताब रखना है
हम पे उस से वाजिब हैं कोशिशें बग़ावत की
तुम ने जिस क़बीले को कामयाब रखना है
रख दो हम फ़क़ीरों की इस कुशादा झोली में
अपनी बादशाही का जो अज़ाब रखना है
तुम तो ख़ुद ज़माने में जब्र की अलामत हो
तुम ने जब्र क्या ज़ेर-ए-एहतिसाब रखना है
शहर-ए-बे-अमाँ हम ने नक़्द-ए-जाँ लुटा कर भी
तेरे हर दरीचे पर कल का ख़्वाब रखना है
(730) Peoples Rate This