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हम तो मौजूद थे रातों में उजालों की तरह - सरवर अरमान कविता - Darsaal

हम तो मौजूद थे रातों में उजालों की तरह

हम तो मौजूद थे रातों में उजालों की तरह

लोग निकले ही नहीं ढूँडने वालों की तरह

जाने क्यूँ वक़्त भी आँखें भी क़लम भी लब भी

आज ख़ामोश हैं गुज़रे हुए सालों की तरह

हाजतें ज़ीस्त को घेरे में लिए रखती हैं

ख़स्ता दीवार से चिमटे हुए जालों की तरह

रात भीगी तो सिसकती हुई ख़ामोशी से

आसमाँ फूट पड़ा जिस्म के छालों की तरह

सारी राहें सभी सोचें सभी बातें सभी ख़्वाब

क्यूँ हैं तारीख़ के बे-रब्त हवालों की तरह

ज़िंदगी ख़ुश्क है वीरान है अफ़्सुर्दा है

एक मज़दूर के बिखरे हुए बालों की तरह

ज़ख़्म पहने हुए मा'सूम भिकारी बच्चे

सफ़्हा-ए-दहर पे बिखरे हैं सवालों की तरह

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In Hindi By Famous Poet Sarwar Arman. is written by Sarwar Arman. Complete Poem in Hindi by Sarwar Arman. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.