तू ने कब इश्क़ में अच्छा बुरा सोचा 'सरवर'
कैसे मुमकिन है कि तेरा बुरा अंजाम न हो
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आरज़ू हसरत और उम्मीद शिकायत आँसू
वाक़िफ़ थे कहाँ हम दिल-ए-ना-चार से पहले
क्या तमाशा देखिए तहसील-ए-ला-हासिल में है
देख ये जज़्ब-ए-मोहब्बत का करिश्मा तो नहीं
बे-कैफ़ जवानी है बे-दर्द ज़माना है
ढूँडते ढूँडते ख़ुद को मैं कहाँ जा निकला
कम-अयारी ने ख़ुदा-सोज़ बनाया ऐसा
बयान क़िस्सा-ए-बेचारगी किया जाए
जिस क़दर शिकवे थे सब हर्फ़-ए-दुआ होने लगे