बे-कैफ़ जवानी है बे-दर्द ज़माना है
नाकाम-ए-मोहब्बत का इतना ही फ़साना है
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सुब्ह को चैन न हो शाम को आराम न हो
आरज़ू हसरत और उम्मीद शिकायत आँसू
आग़ाज़-ए-मोहब्बत से अंजाम-ए-मोहब्बत तक
आशिक़ी की ख़ैर हो 'सरवर' कि अब इस शहर में
क्या तमाशा देखिए तहसील-ए-ला-हासिल में है
जिस क़दर शिकवे थे सब हर्फ़-ए-दुआ होने लगे
तू ने कब इश्क़ में अच्छा बुरा सोचा 'सरवर'
वाक़िफ़ थे कहाँ हम दिल-ए-ना-चार से पहले
वक़्त के हाथों हिकायात-ए-अना भूल गए
ढूँडते ढूँडते ख़ुद को मैं कहाँ जा निकला