आरज़ू हसरत और उम्मीद शिकायत आँसू
इक तिरा ज़िक्र था और बीच में क्या क्या निकला
Javed Akhtar
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शौक़ है तुझ को ज़माने में तिरा नाम रहे
बयान क़िस्सा-ए-बेचारगी किया जाए
कम-अयारी ने ख़ुदा-सोज़ बनाया ऐसा
तू ने कब इश्क़ में अच्छा बुरा सोचा 'सरवर'
आग़ाज़-ए-मोहब्बत से अंजाम-ए-मोहब्बत तक
ढूँडते ढूँडते ख़ुद को मैं कहाँ जा निकला
आशिक़ी की ख़ैर हो 'सरवर' कि अब इस शहर में
बे-कैफ़ जवानी है बे-दर्द ज़माना है
जिस क़दर शिकवे थे सब हर्फ़-ए-दुआ होने लगे
सुब्ह को चैन न हो शाम को आराम न हो