आग़ाज़-ए-मोहब्बत से अंजाम-ए-मोहब्बत तक
''इक आग का दरिया है और डूब के जाना है'
Habib Jalib
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Wasi Shah
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आशिक़ी की ख़ैर हो 'सरवर' कि अब इस शहर में
बयान क़िस्सा-ए-बेचारगी किया जाए
तू ने कब इश्क़ में अच्छा बुरा सोचा 'सरवर'
क्या तमाशा देखिए तहसील-ए-ला-हासिल में है
आरज़ू हसरत और उम्मीद शिकायत आँसू
ढूँडते ढूँडते ख़ुद को मैं कहाँ जा निकला
शौक़ है तुझ को ज़माने में तिरा नाम रहे
बे-कैफ़ जवानी है बे-दर्द ज़माना है
कम-अयारी ने ख़ुदा-सोज़ बनाया ऐसा
वक़्त के हाथों हिकायात-ए-अना भूल गए