तेरी आशुफ़्ता-मिज़ाजी ऐ दिल
क्या ख़बर कौन नगर ले जाए
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रात ढलने के ब'अद क्या होगा
अपने लिए तज्वीज़ की शमशीर-ए-बरहना
कभी तेग़-ए-तेज़ सुपुर्द की कभी तोहफ़ा-ए-गुल-ए-तर दिया
आँखों में सौग़ात समेटे अपने घर आते हैं
भर जाएँगे जब ज़ख़्म तो आऊँगा दोबारा
पेपर-वेट
फ़ुरात-ए-फ़ासिला से दजला-ए-दुआ से उधर
इक दास्तान अब भी सुनाते हैं फ़र्श ओ बाम
उम्र का कोह-ए-गिराँ और शब-ओ-रोज़ मिरे
पूरे चाँद की सज धज है शहज़ादों वाली
चाहत
सियाही फेरती जाती हैं रातें बहर ओ बर पे