सूरमा जिस के किनारों से पलट आते हैं
मैं ने कश्ती को उतारा है उसी पानी में
Javed Akhtar
Gulzar
Habib Jalib
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(816) Peoples Rate This
उसी किनारा-ए-हैरत-सरा को जाता हूँ
जब शाम हुई मैं ने क़दम घर से निकाला
सितारे का गुमान
दश्त छोड़ा तो क्या मिला 'सरवत'
गदा-ए-शहर-ए-आइंदा तही-कासा मिलेगा
मैं जो गुज़रा सलाम करने लगा
यक-ब-यक मंज़र-ए-हस्ती का नया हो जाना
सोचता हूँ दयार-ए-बे-परवा
वो मेरे सामने मल्बूस क्या बदलने लगा
निस्यान का फ़रिश्ता
आँखों में दमक उट्ठी है तस्वीर-ए-दर-ओ-बाम