सुब्ह के शहर में इक शोर है शादाबी का
गिल-ए-दीवार, ज़रा बोसा-नुमा हो जाना
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ख़ुश-लिबासी है बड़ी चीज़ मगर क्या कीजे
एक पुल बनाया जा रहा है
''एक नज़्म कहीं से भी शुरूअ हो सकती है''
मौत के दरिंदे में इक कशिश तो है 'सरवत'
चाहत
निस्यान का फ़रिश्ता
दो ही चीज़ें इस धरती में देखने वाली हैं
नई नई सी आग है या फिर कौन है वो
सोचता हूँ दयार-ए-बे-परवा
हुस्न-ए-बहार मुझ को मुकम्मल नहीं लगा
नींद का फ़रिश्ता
सख़ावत का फ़रिश्ता