सोचता हूँ कि उस से बच निकलूँ
बच निकलने के ब'अद क्या होगा
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दश्त ले जाए कि घर ले जाए
अपने अपने घर जा कर सुख की नींद सो जाएँ
रात बाग़ीचे पे थी और रौशनी पत्थर में थी
घर से निकला तो मुलाक़ात हुई पानी से
एक पुल बनाया जा रहा है
पूरे चाँद की सज धज है शहज़ादों वाली
मिरे सीने में दिल है या कोई शहज़ादा-ए-ख़ुद-सर
मौत के दरिंदे में इक कशिश तो है 'सरवत'
दस से ऊपर
किताब-ए-सब्ज़ ओ दर-ए-दास्तान बंद किए
क़िन्दील-ए-मह-ओ-मेहर का अफ़्लाक पे होना
आए हैं रंग बहाली पर