सोचता हूँ दयार-ए-बे-परवा
क्यूँ मिरा एहतिराम करने लगा
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पाँव साकित हो गए 'सरवत' किसी को देख कर
किताब-ए-सब्ज़ ओ दर-ए-दास्तान बंद किए
ले आएगा इक रोज़ गुल ओ बर्ग भी 'सरवत'
सुब्ह के शोर में नामों की फ़रावानी में
आए हैं रंग बहाली पर
मिलना और बिछड़ जाना किसी रस्ते पर
चाहत
किस पर पोशीदा और किस पे अयाँ होना था
दश्त ले जाए कि घर ले जाए
वहीं पर मिरा सीम-तन भी तो है
मिरे सीने में दिल है या कोई शहज़ादा-ए-ख़ुद-सर
अच्छा सा कोई सपना देखो और मुझे देखो