नई नई सी आग है या फिर कौन है वो
पीले फूलों गहरे सुर्ख़ लिबादों वाली
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रात बाग़ीचे पे थी और रौशनी पत्थर में थी
मैं सो रहा था और मिरी ख़्वाब-गाह में
आँखों में दमक उट्ठी है तस्वीर-ए-दर-ओ-बाम
जाने उस ने क्या देखा शहर के मनारे में
दस से ऊपर
थामी हुई है काहकशाँ अपने हाथ से
शहज़ादी तुझे कौन बताए तेरे चराग़-कदे तक
उम्र का कोह-ए-गिराँ और शब-ओ-रोज़ मिरे
लफ़्ज़ों के दरमियान
अपने अपने घर जा कर सुख की नींद सो जाएँ
सोचता हूँ दयार-ए-बे-परवा
अच्छा सा कोई सपना देखो और मुझे देखो