मिलना और बिछड़ जाना किसी रस्ते पर
इक यही क़िस्सा आदमियों के साथ रहा
Gulzar
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Mohsin Naqvi
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Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
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दरख़्त मेरे दोस्त
सितारे का गुमान
देखा जो उस तरफ़ तो बदन पर नज़र गई
सुब्ह के शहर में इक शोर है शादाबी का
ले आएगा इक रोज़ गुल ओ बर्ग भी 'सरवत'
भर जाएँगे जब ज़ख़्म तो आऊँगा दोबारा
बुझी रूह की प्यास लेकिन सख़ी
लफ़्ज़ों के दरमियान
सख़ावत का फ़रिश्ता
इक रोज़ मैं भी बाग़-ए-अदन को निकल गया
मैं आग देखता था आग से जुदा कर के
फिर वो बरसात ध्यान में आई