मिरे सीने में दिल है या कोई शहज़ादा-ए-ख़ुद-सर
किसी दिन उस को ताज-ओ-तख़्त से महरूम कर देखूँ
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अपने अपने घर जा कर सुख की नींद सो जाएँ
अच्छा सा कोई सपना देखो और मुझे देखो
वहीं पर मिरा सीम-तन भी तो है
पत्थरों में आइना मौजूद है
किस पर पोशीदा और किस पे अयाँ होना था
पाँव साकित हो गए 'सरवत' किसी को देख कर
तेरी आशुफ़्ता-मिज़ाजी ऐ दिल
जिसे अंजाम तुम समझती हो
''एक नज़्म कहीं से भी शुरूअ हो सकती है''
पूरे चाँद की सज धज है शहज़ादों वाली
ये कौन उतरा पए-गश्त अपनी मसनद से
देखा जो उस तरफ़ तो बदन पर नज़र गई