ख़ुश-लिबासी है बड़ी चीज़ मगर क्या कीजे
काम इस पल है तिरे जिस्म की उर्यानी से
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सोचता हूँ कि उस से बच निकलूँ
पाँव साकित हो गए 'सरवत' किसी को देख कर
दिन और झाग
देखा जो उस तरफ़ तो बदन पर नज़र गई
आँखों में सौग़ात समेटे अपने घर आते हैं
सोचता हूँ दयार-ए-बे-परवा
हुस्न-ए-बहार मुझ को मुकम्मल नहीं लगा
'सरवत' तुम अपने लोगों से यूँ मिलते हो
पेपर-वेट
किताब-ए-सब्ज़ ओ दर-ए-दास्तान बंद किए
ये होंट तिरे रेशम ऐसे
शादमानी का फ़रिश्ता