दश्त छोड़ा तो क्या मिला 'सरवत'
घर बदलने के ब'अद क्या होगा
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यक-ब-यक मंज़र-ए-हस्ती का नया हो जाना
सुब्ह के शहर में इक शोर है शादाबी का
आँखों में दमक उट्ठी है तस्वीर-ए-दर-ओ-बाम
ये होंट तिरे रेशम ऐसे
पेपर-वेट
दिन और झाग
पूरे चाँद की सज धज है शहज़ादों वाली
दो ही चीज़ें इस धरती में देखने वाली हैं
फ़ुरात-ए-फ़ासिला से दजला-ए-दुआ से उधर
सूरमा जिस के किनारों से पलट आते हैं
गदा-ए-शहर-ए-आइंदा तही-कासा मिलेगा
किताब-ए-सब्ज़ ओ दर-ए-दास्तान बंद किए