अपने अपने घर जा कर सुख की नींद सो जाएँ
तू नहीं ख़सारे में मैं नहीं ख़सारे में
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Wasi Shah
Gulzar
Allama Iqbal
Habib Jalib
Parveen Shakir
Rahat Indori
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ये इंतिहा-ए-मसर्रत का शहर है 'सरवत'
यहाँ मज़ाफ़ात में
दरख़्त मेरे दोस्त
सोचता हूँ दयार-ए-बे-परवा
इक दास्तान अब भी सुनाते हैं फ़र्श ओ बाम
फिर वो बरसात ध्यान में आई
पत्थरों में आइना मौजूद है
यक-ब-यक मंज़र-ए-हस्ती का नया हो जाना
बहुत मुसिर थे ख़ुदायान-ए-साबित-ओ-सय्यार
आश्नाई का फ़रिश्ता
दश्त छोड़ा तो क्या मिला 'सरवत'
दस से ऊपर