आँखों में दमक उट्ठी है तस्वीर-ए-दर-ओ-बाम
ये कौन गया मेरे बराबर से निकल कर
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पूरे चाँद की सज धज है शहज़ादों वाली
उम्र का कोह-ए-गिराँ और शब-ओ-रोज़ मिरे
मैं तुम्हें याद कर रहा था
नई नई सी आग है या फिर कौन है वो
घर से निकला तो मुलाक़ात हुई पानी से
वहीं पर मिरा सीम-तन भी तो है
फिर वो बरसात ध्यान में आई
एक पुल बनाया जा रहा है
दश्त ले जाए कि घर ले जाए
नज़्म
रात ढलने के ब'अद क्या होगा
हवा ओ अब्र को आसूदा-ए-मफ़्हूम कर देखूँ