ख़ुश्बू की आवाज़ सुनी
ग़ुंचा-ए-लब के खिलते ही
पानी पर कुछ नक़्श बने
परतव-ए-शाख़ के हिलते ही
सारी बातें भूल गए
उस से आँखें मिलते ही
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विसाल
सुब्ह के शोर में नामों की फ़रावानी में
उसी किनारा-ए-हैरत-सरा को जाता हूँ
थामी हुई है काहकशाँ अपने हाथ से
शादमानी का फ़रिश्ता
हवा ओ अब्र को आसूदा-ए-मफ़्हूम कर देखूँ
सूरमा जिस के किनारों से पलट आते हैं
मौत के दरिंदे में इक कशिश तो है 'सरवत'
आँखों में सौग़ात समेटे अपने घर आते हैं
वो मेरे सामने मल्बूस क्या बदलने लगा
ये होंट तिरे रेशम ऐसे
सितारे का गुमान