शादमानी के फ़रिश्ते
सुब्ह में चेहरा है किस का
झिलमिलाती शाम क्या है
चमन में वो जो आती है
उस परी का नाम कया है
Gulzar
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Habib Jalib
Allama Iqbal
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Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
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पूरे चाँद की सज धज है शहज़ादों वाली
आँखों में दमक उट्ठी है तस्वीर-ए-दर-ओ-बाम
मैं सो रहा था और मिरी ख़्वाब-गाह में
ख़ुश-लिबासी है बड़ी चीज़ मगर क्या कीजे
दस से ऊपर
सोचता हूँ कि उस से बच निकलूँ
आश्नाई का फ़रिश्ता
इक दास्तान अब भी सुनाते हैं फ़र्श ओ बाम
फ़ुरात-ए-फ़ासिला से दजला-ए-दुआ से उधर
गर्दिश-ए-सय्यारगाँ ख़ूब है अपनी जगह
हुस्न-ए-बहार मुझ को मुकम्मल नहीं लगा
सुब्ह होते ही