ज़मीं अतराफ़ की काली हुई जलने लगे देवे
हवाएँ ख़ुश्क पत्तों को गिरा कर सो गईं शायद
फ़रिश्ता नींद का नाराज़ है मुझ से ये कहता है
बहुत दिन सो लिए बेदार रह कर भी ज़रा देखो
अज़ान-ए-फ़ज्र होने तक सितारों की अदा देखो
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जाने उस ने क्या देखा शहर के मनारे में
सितारे का गुमान
दिन और झाग
ये कौन उतरा पए-गश्त अपनी मसनद से
मुंहदिम होती हुई आबादियों में फ़ुर्सत-ए-यक-ख़्वाब होते
चाहत
पानी का हाथ
दो ही चीज़ें इस धरती में देखने वाली हैं
दरख़्त मेरे दोस्त
दुश्वार दिन के किनारे
पाँव साकित हो गए 'सरवत' किसी को देख कर
लहर-लहर आवारगियों के साथ रहा