महरान, मुझे दो
आवाज़ का इक पँख
टूटे हुए रिश्ते
पुरखों के नविश्ते
ज़रख़ेज़ किनारा
ये हाथ तुम्हारा
गर्म और सुनहरा
उम्मीद और पानी
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Gulzar
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Ahmad Faraz
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Wasi Shah
Mohsin Naqvi
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थामी हुई है काहकशाँ अपने हाथ से
यहाँ मज़ाफ़ात में
दो ही चीज़ें इस धरती में देखने वाली हैं
रात ढलने के ब'अद क्या होगा
दरख़्त मेरे दोस्त
पत्थरों में आइना मौजूद है
ख़ुश-लिबासी है बड़ी चीज़ मगर क्या कीजे
शादमानी का फ़रिश्ता
हवा ओ अब्र को आसूदा-ए-मफ़्हूम कर देखूँ
जंगल में कभी जो घर बनाऊँ
भर जाएँगे जब ज़ख़्म तो आऊँगा दोबारा
मैं सो रहा था और मिरी ख़्वाब-गाह में