दुश्वार दिन के किनारे
ख़्वाबों में घर लहरों पर आहिस्ता खुलता है
पास बुलाता है कहता है धूप निकलने से
पहले सो जाऊँगा मैं हँसता हूँ लड़की
तेरे हाथ बहुत प्यारे हैं वो हँसती है
देखो लालटैन के शीशे पर कालक जम जाएगी
बारिश की ये रात बहुत काली है कच्चे रस्ते पर
गाड़ी के पहिए घाव बना कर खो जाते हैं
एक सितार
बीस बरस की दूरी पर अब भी रौशन है
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